Monday, July 11, 2011

देशभक्ति के मायने



देशभक्ति के मायने.........????


हर व्यक्ति तथा समाज की अपनी एक विशिष्ट पहचान होती है और यही उसका चरित्र भी होता है।' इसी तरह हर देश का भी अपना एक चरित्र होता है जिसे राष्ट्रीय चरित्र कहते है' और ये चरित्र ही उस देश को दुनिया में अपनी पहचान देता है। ये राष्ट्रीय चरित्र की आत्मा उस देश के हर नागरिक के पास होती है। यही राष्ट्रीय चरित्र व्यक्तिगत स्तर पर देशप्रेम के रूप में प्रकट होता है.
तो अब हम बात करें अपने देश की और स्वयं से ही सवाल करें कि हमारा राष्ट्रीय चरित्र क्या है??????................
हमारे यहाँ राष्ट्रीय चरित्र भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी,बेईमानी और नानाप्रकारों से प्रकट होता है। जहाँ ईमानदारी राष्ट्रीय चरित्र के कुछ एक घटकों में से एक है वह हमरे देश में अब अपवाद स्वरुप यदाकदा देखने को मिल जाती है, वफ़ादारी एक अन्य घटक है जो देश के प्रति तो नहीं दिखती अलबत्ता सत्ता पर काबिज राजनितिक पार्टी या सत्ता के बाहर खड़ी विपक्षी पार्टी क प्रति पूरी निष्ठां के साथ निभाई जाती है, और यही हमारे यहाँ राष्ट्रीय चरित्र याने देशभक्ति के रूप स्थापित है, तो यही देशभक्ति या देशप्रेम है और हर भारतीय को ये बात अच्छी तरह समझ लना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति सरकार कि गलत नीति के विरुद्ध आवाज ऊठाता तो उसे तत्काल ही देशद्रोही कि श्रेणी मन दल दिया जाता है- हर आम भारतीय ये बात दिमाग में बिठा ले....................... इसलिए आगे से ये जान ले कि सत्ता पे आरूढ़ कोई भी राजनितिक पार्टी चाहे कितने भी धोटाले करे आम आदमी कि मजाल होनी ही नहीं चाहिए कि वह इसके विरुद्ध कुछ कहने का साहस भी करे। और सरकार कितने भी सुकर्म करे ,चाहे देश को कितने भी खतरे में डाले और कितने भी देशद्रोह के कार्य करे उस पर कोई भी ऊँगली नहीं ऊठा सकता ये हक़ केवल विपक्ष कि झोली मेंडाला गया है जो केवल कुछ समय सियारों वाली 'हुआ -हुआ ' करके अपने कर्तव्यों कि इतिश्री कर लेती है।
तो अगली बार चाहे कितना भी भ्रष्टाचार, घोटाला उजागर हो इतना जान लीजिये कि आपको गांधीजी के तीन बंदरों कि तरह सब कुछ देखना, सुनना है पर कहना कुछ नहीं है................................
अब कहने को कुछ नहीं है इसलिए बिदा............................



Monday, July 4, 2011

भारत है कहाँ????

आइये भारत को खोजें--------------------??????


 

भारत का नक्शा एक नजर से  देखा  जाये  तो  उसे  देखते  ही  एक  अपनत्व  की  भावना  मन  में  आ  जाती  है . मन
तरंगित  हो  उठता  है . पर .......... जैसे  ही  नक़्शे  पर  निगाह  जाती  है  तो  नजर  ' भारत  ' शब्द  को खोजती   रह  जाती  है , वाकई  आज  भारत  शब्द  खोजने  पर  भी  नहीं  मिलता . आज  भारत  के  तीन  शब्द  तो  नहीं  मिलते  पर  पूरा  नक्षा  अलग -अलग  खानों  में  बंटा मिलता  है  और  इन  विभक्त  खानों  में  महाराष्ट्र  ( राष्ट्र के अन्दर महा राष्ट्र.........???), गुजरात, दिल्ली , पंजाब, तमिलनाडु.................. बता नजर आ रहा है। पर नहीं नजर आ रहा तो भारत।
आज अगर एक आम आदमी से सवाल करें की वो कौन है या फिर उसका परिचय पूछा जाये तो ये जूमला शायद ही सुने देगा की , मै भारतीय हूँ। आप केवल सुन पाएंगे - हम महाराष्ट्रियन हैं या मै गुजरती हूँ या मद्रासी हूँ....., मै भारतीय हूँ......ये अब सुनना दुर्लभ है।
सच तो ये है की आज आप खोजने जायेंगे तो पाएंगे की 'भारत' कही खो चूका है। आप इंडियन तो हो सकते हैं पर भारतीय नहीं। स्वयं को इंडियन आप भारत के बहार भी बड़े आराम से बोल सकते हैं। एक समय था जब दूरदर्शन पर एक नारा बुलंद था की कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत एक है....................... जो आज गायब हो चूका है।
आज तो हालत ये है की क्षेत्रवाद इतना हावी हो चूका है की आम भारतीय , भारतीय कहलाने में गर्व नहीं महसूस करता बल्कि महाराष्ट्रियन या गुजरती कहलाने में अधिक गर्व महसूस करता है। हम सब भारतीय हैं ये बात अब साल में केवल २ या ३ दिनों में ही याद करने पर ही याद  आती है अगर ये तिथियाँ नहीं होती तो शायद ये भी याद नहीं आ पाता की ,
" भारत है कहाँ........???"




Friday, July 1, 2011

बलात्कार और कितने ......? और कब तक...........?

बलात्कार से दहला उत्तरप्रदेश.....................??


विगत 2-3 दिनों से उत्तरप्रदेश का नाम न्यूज़ चैनलों  में छाया रहा किसी अच्छी खबर के लिए नहीं वरन बुरी खबर के लिए. ये खबर नारी की अस्मिता से जुड़ी थी.नारी की अस्मिता एक बार नहीं बल्कि कई बार तार-तार हुई. मुखयतः कस्बों और गावों में. जिनकी अस्मिता को तार-तार किया गया उनमें से अधिकतर नाबालिग  कन्याएं थीं, तथा कुछ की अस्मिता से खेलने के बाद उनकी हत्या कर दी गई. ये सब उस प्रदेश में हुआ जिसकी मुख्य मंत्री एक महिला है. 
नारी की अस्मिता को तार-तार कर देने के लिए एक बहुत ही प्रचलित शब्द  है  "बलात्कार". इस शब्द का उपयोग न्यूज़ चैनेल इस हद तक कर चुकी हैं की ये शब्द सबकी जुबान पर चढ़ चुका है. ये शब्द अब किसी परिचय का मोहताज नहीं रह गया है. शर्मनाक एवं दुखदायी बात ये है की न्यूज़ चैनलों में जब ऐसी ख़बरों का वचन होता है तो समाचार पढने वाले उसे एक सनसनी की तरह परोसते हैं और घर बैठे जो समाचार सुन रहे होते हैं वे खाना खाते और चाय के प्याले के साथ वह घटनाक्रम भी राजाना समाचारों की तरह ही हो जाता है.
बलात्कार याने नारी की अस्मिता को तार-तार करने वाले समाचार सुबह से शाम तक इतनी बार प्रसारित हो चुका होता है की उसके प्रति आम जानकी संवेदना भी ख़त्म जो जाती है.

वास्तव में ये सच है की न्यूज़ चैनलों द्वारा प्रसारित होने वाले समाचार इन चैनलों के लिए केवल अपनी T  R  P
बढ़ाने का साधन मात्र हैं और वे समाचार को जितना सनसनीखेज बन कर पेश कर सकते हैं करते हैं और इसके लिए वे विषय की संवेदनशीलता और उसकी सामजिकता का भी ध्यान नहीं रखते. समाचारों  का जिस तरह से आजकल प्रसारण हो रहा है उससे उनके प्रति जो आम जन की संवेदनाशीलता  ख़त्म होती जा रही है. आज यदि हम अपनी संवेदना को टटोलें तो पाएंगे की बलात्कार जैसे मुद्दे और उनसे जुड़े समाचार अब हमारे  लिए केवल  खबर बन कर रह गए हैं.
नारी की अस्मिता एक बहुत ही संवेदनशील मुद्दा है क्योंकि भारत जैसे देश में आज भी नारी की अस्मिता की परीक्षा ली जाती है और  उसके चरित्र की कुंजी भी उसकी अस्मिता से ऐसे ही जुड़ी है जैसे जीवन से सांस की डोर. ऐसे में जब किसी नारी या नाबालिग कन्या की अस्मिता को कोई वहशी ( अब तो कोई भी कभी भी वहशी बन रहा है) तार-तार करता है तो वो अपना जीवन फिर एक बार खो चुकी होती है. क्योंकि भारत जैसे देश में नारी के साथ यदि बलात्कार होता है तो उसमें भी उसी का दोष माना जाता है.

उत्तर प्रदेश में पिछले दिनों जिस तरह से नारी की अस्मिता के परखच्चे किये गए वो शर्मनाक ही नहीं अमानवीय है और ये न्यूज़ चैनलों के लिए केवल खबर ही थी पर उसका कहीं विरोध नही दिखाई दिया. नारी को देवी मानाने वाले इस देश में नारी देवी बनकर पूजी जा सकती है या घर के सामान की तरह उपयोग में आने वाली वस्तु हो सकती है .क्योंकि वाकई यदि वह इन्सान की तरह इस समाज  का हिस्सा होती तो उसकी इज्जत से इस तरह खिलवाड़ नहीं होता. बलात्कार तो अब एक ऐसी बात होती जा रही है जिसके लिए लोग अब संवेदना भी प्रकट करने की आवश्यकता नहीं समझते. उत्तर प्रदेश की मुख्य मंत्राणी स्वयं एक महिला है चाहें तो वे इस घटना की शिकार महिलाओं और नाबालिग कन्याओं को न्याय दिलवा सकती हैं............क्या कहती हैं मंत्री साहिबा..........................???
जिस नारी या कन्या की अस्मिता एक बार तार-तार हो जीती है उसकी जिदगी आजाब बन जाती है वो रोज-रोज मरकर जीती है, दुनिया की निगाहें रोज रोज उसके साथ हुए हादसे की उसको याद दिलाती है.और लोग अपनी निगाहों से उसका रोज-रोज सैकड़ों बार बलात्कार करते हैं. ये भारत जैसे देश में ही हो सकता है हम बेहद संवेदनशील हैं और इसका ढोल भी पिटते हैं पर जब नारी की अस्मिता की बात आती हैं तो हमारी संवेदनशीलता कहाँ गायब हो जाती है पता नहीं.............??
अब प्रश्न ये है की इस तरह की घटनाओं को बढ़ने से रोका जाये और जो अब तक हो चुकी हैं उसके लिए राष्ट्रीय या प्रादेशिक महिला आयोग क्या कर रह है...........? और हमारा क्या कर्तव्य होना चाहिए ये हमें सीखना नहीं पड़ेगा.